ग़ज़ल
वक्त गुजरे हुए याद करने लगा.
अक्स क्या क्या नजर में उभरने लगा.
जाने क्यूँ हो गया ये परेशान दिल ,
जब भी उनकी गली से गुजरने लगा.
इस तरह की हवा चल रही दोस्तों,
खून का आज रिश्ता बिखरने लगा.
वो न उल्फत रही वो न चाहत रही,
आदमी बात करने से डरने लगा.
एक लमहा मिला भी न हंसते हुए,
हम समझते रहे दिन संवरने लगा.
वक्त ने भर दिया यूँ हवा में जहर,
आदमी है कि बेमौत मरने लगा.
पछियों की तरह भी अहम दोस्तों,
अब जमीं पर मेरा भी उतरने लगा.
शिवनारायण शिव
26-7-21