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मेरी खुशियों का इरादा जो किया करती है

ग़ज़ल
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मेरी खुशियों का इरादा जो किया करती है.
जिन्दगी दर्द भी छुप छुप के दिया करती है.

दीन दुखियों से  हमेशा ही घृणा है    करती, 
काश दुनिया ये अमीरों की    दुआ करती है.

जुल्म करके भी बड़े     लोग छूट हैं जाते, 
बेकसूरों  को  अदालत  भी सजा करती है.

ठीक से पांव भी    पड़ते हैं नहीं धरती पर,
इस तरह तेरी   मुहब्बत भी  नशा करती है.

आदमी फर्ज की    राहों से भटक है जाता, 
आखिरी सांस तलक शम्मा जला करती है.

एक दो रोज की ये     बात नहीं है साथी, 
जिंदगी रोज ही   बेखौफ   खता करती है.

जान यह पाया नहीं आज तलक आखिर क्यूँ
देखकर मुझको तेरी आंख दुखा करती है.

पेड़ बन करके छाया करो. पुन्य भी कुछ कमाया करो.

 ग़ज़ल











पेड़ बन  करके छाया करो.

पुन्य भी कुछ कमाया करो.


ये वो धन है जो घटता नहीं, 

प्यार दिल से  लुटाया  करो.


जो अमन  का बने अग्रणी, 

वो   पताका   उठाया करो.


 रोज भगवान   के नाम पर, 

 एक दीपक   जलाया करो.

ठीक से तैरना     सीख लो, 

फिर नदी में    नहाया करो.

कुछ करे भी न खोले जबां, 

सर उसे मत  झुकाया करो.

जो मुहब्बत    का पैगाम दे, 

वो ग़ज़ल    गुनगुनाया करो.

क्या नहीं मैंने किया दिलको रिझाने के लिए. जिन्दगी को और भी उम्दा बनाने के लिए.

 ग़ज़ल 

क्या नहीं मैंने किया दिलको रिझाने के लिए.

जिन्दगी को     और भी उम्दा बनाने के लिए.


आइये मिलकर कोई   ईजाद अब रस्ता करें, 

दोस्तों फिर वक्त की सूरत  सजाने   के लिए.


जब मेरी कुछ बात   पर नाराज़गी  होने लगी, 

चुप जबां को कर लिया रिश्ता बचाने के लिए.


जिसने उल्फत पे मेरी कुछ गौर फरमाया नहीं, 

दिल तड़पता क्यूँ  है उसके  पास जाने के लिए.


आदमी बेताब    है खुद के   गमों के बोझ से, 

कौन आता है किसी का दुख मिटाने के लिए.


नीर वाले मेघ तो      बरसात  करते हैं  कहीं, 

मेघ आते हैं इधर      बिजली गिराने के लिए.


मैं बहुत दिन की खुशी की ख्वाहिशें रखता नहीं, 

एक पल   मुझको भी चहिये मुस्कराने के लिए.


शिव नारायण शिव

26-7-21

महके फूल हवायें झूमी

गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...