उतना नीर नहीं बादल में जितना अपनी आँखों में.
जीवन सब हीजी लेते हैंसुख सपने उल्लास लिए.
थोड़ी सी आशाएं कुछ ,अपनेअधरों पर प्यास लिए.
इच्छाएं ऐसीउड़ती हैं बगुले जैसे रातों में.
अपनी झूठी मर्यादा के खातिर जीते मरते हैं.
गाँव पड़ोसी मीत हितैषी कहाँ किसी से डरते हैं.
सारा खेल तमाशा अब भी धनवानों के हाथों में.
अहम स्वार्थ में डूबी दुनिया सारी धन की प्यासी है.
मगर गरीबों के चेहरे पर छाई अभी उदासी है.
थोड़े से ही क्षण बाकी हैं अपनी चलती सांसों में.
प्यार करूँ दुलराऊं किसको किसे लगाऊँ सीने से.
मैं तो खुदभी हार गया हूँ अपना जीवन जीने से.
गहरी नींद कहाँ आती है अब अपनों की बाहों में.