ग़ज़ल
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चरचा चारो ओर हुई है.
दुनिया आदम खोर हुई है.
गिर जायेगा घर कैसा हो,
नींव अगर कमजोर हुई है.
सुनते हैं कि टुकड़े- टुकड़े,
सम्बन्धों की डोर हुई है.
धरती क्यूँ है फिर भी प्यासी
बर्षा गर घनघोर हुई है.
घर में मित्रों बैठे बैठे,
तबियत अपनी बोर हुई है.
दो रोटी के लिए जिंदगी,
अपनी भी तो चोर हुई है.
देखो आगे क्या है होता,
उथल-पुथल हर छोर हुई है.
शिव नारायण शिव
2-9-21