ग़ज़ल

 ग़ज़ल

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कोई बात ये    कहने वाला नहीं है.

गरीबों के घर में    निवाला नहीं है.


जुदा हो गयी  हैं भले  अपनी राहे.

तुझे अपने दिल से निकाला नहीं है.


भला ही किया है सदा जिन्दगी में, 

किसी पे बुरी नज्र    डाला नहीं है.


ये जाकर समाचार सूरज को दे दो

मेरी इस गली में     उजाला नहीं है, 


ये दावा है मेरा कि घर में भी अपने, 

किसी शख्स का हाथ काला नहीं है.


यहाँ नफरतों के     हैं कालेज सारे, 

कहीं प्यार की    पाठशाला नहीं है.


कोई खास अपना हो या अजनबी हो, 

किसे दुख में मैंने    संभाला नहीं है


शिव नारायण शिव

15-12-21


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गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...