जब दिल में अन्तर बनता है | घर के भीतर घर बनता है ||

 ग़ज़ल

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जब दिल में अन्तर बनता है.

घर के भीतर    घर बनता है.


गाते -गाते          गाते -गाते, 

फिर गीतों का  स्वर बनता है.


जीवन देने       या कि  लेने, 

आखिर क्यूँ  खंजर बनता है.


पहरे हैं फिर   भी अपने को, 

लुट जाने का   डर बनता है.


देख लिया है तुझसे मिलकर, 

दिल कैसे पत्थर    बनता है.


जब तेरा है  हुआ    आगमन , 

ये हसीन       मंजर बनता है.


खुशियों की है   चाहत होती, 

पर जीवन दुखतर   बनता है.


शिव नारायण शिव

4-9-21

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