ग़ज़ल
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मुट्ठी भर आहार न देगा.
ये पत्थर है प्यार न देगा.
रोने पर प्रतिबन्ध करेगा,
हंसने का अधिकार न देगा.
इसकी भूख नहीं जायेगी,
जब तक डंडा मार न देगा.
सोच समझकर हाथ बढ़ाओ,
कुछ भी यह संसार न देगा.
तू तो मक्खनबाज नहीं है,
जगह तुझे अखबार न देगा.
यह बाजार लगा है नकदी,
कोई तुझे उधार न देगा.
अस्पताल है धनवानों का,
यह सस्ता उपचार न देगा.
शिव नारायण शिव
5-9-21