रूप बदलती है दुनिया | जहर उगलती है दुनिया ||

 ग़ज़ल

*******

रूप बदलती   है दुनिया.

जहर उगलती है दुनिया.


जब ठंडक है बढ़ जाती , 

पंखा झलती   है दुनिया.


छत जब मेरी टपकती है, 

खूब   उछलती है दुनिया.


सूरज कितना   गरमाये,

नहीं पिघलती है दुनिया.


मच जाती है उथल-पुथल, 

जिधर निकलती है दुनिया.


चांद   सितारे      पाने को, 

सदा   मचलती   है दुनिया.


संग फूल  हैं       बन जाते, 

जिधर भी चलती है दुनिया.


शिव नारायण शिव

६-9-21

महके फूल हवायें झूमी

गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...