ग़ज़ल
*******
रूप बदलती है दुनिया.
जहर उगलती है दुनिया.
जब ठंडक है बढ़ जाती ,
पंखा झलती है दुनिया.
छत जब मेरी टपकती है,
खूब उछलती है दुनिया.
सूरज कितना गरमाये,
नहीं पिघलती है दुनिया.
मच जाती है उथल-पुथल,
जिधर निकलती है दुनिया.
चांद सितारे पाने को,
सदा मचलती है दुनिया.
संग फूल हैं बन जाते,
जिधर भी चलती है दुनिया.
शिव नारायण शिव
६-9-21