ग़ज़ल
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जितना परदादारी है.
उतना कलह बिमारी है.
धन बर्साया ज्यादा जो,
उसने बाजी मारी है,
चाहे जो आदेश करे,
मन ऐसा अधिकारी है.
खुद तो दुख में है डूबा,
जिसने नजर उतारी है.
शीतलता है चेहरे पर,
दिल में क्यूँ चिन्गारी है.
बिकने पर है आमादा,
मेरी अब खुद्दारी है.
कल थी बगिया आमों की,
आज वहाँ बंसवारी है.
शिव नारायण शिव
7-9-21