जितना परदादारी है | उतना कलह बिमारी है||

 ग़ज़ल

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जितना    परदादारी है.

उतना कलह बिमारी है.


धन बर्साया ज्यादा जो, 

उसने     बाजी मारी है, 


चाहे जो    आदेश करे, 

मन ऐसा  अधिकारी है.


खुद तो दुख में है डूबा, 

जिसने नजर उतारी है.


शीतलता   है  चेहरे पर, 

दिल में  क्यूँ चिन्गारी है.


बिकने पर   है आमादा, 

मेरी अब       खुद्दारी है.


कल थी बगिया आमों की, 

आज वहाँ      बंसवारी है.


शिव नारायण शिव

7-9-21

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गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...