व्यर्थ सभी तदबीर हुई है | यूँ अपनी तकदीर हुई है ||

 ग़ज़ल

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व्यर्थ सभी तदबीर     हुई है.

यूँ अपनी    तकदीर   हुई है.


लूट     रहे सब   दोनों हाथों, 

खतरे     में     जागीर हुई है.


रोज हुई गर     साफ सफाई, 

क्यूँ  धूमिल      तस्वीर हुई है, 


पहले से   सच है कि   छोटी, 

उल्फत की      जंजीर  हुई है.


पड़ी बहुत है     गुड़ की भेली, 

फिर  भी  कड़वी   खीर हुई है.


है गजलों     का दौर चला यूँ, 

दुनिया      गालिब मीर हुई है.


आज मेरे दिल के शायर की, 

हर झूठी         तहरीर हुई है.


शिव नारायण शिव

27-8-21

महके फूल हवायें झूमी

गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...