ग़ज़ल
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सहमी हुई गली मिलती है.
हर इक खबर बुरी मिलती है.
मुरझाये सब कमल ताल के,
सूखी हुई नदी मिलती है.
ऐसा तुझ पे क्या है गुजरा,
तेरी नजर झुकी मिलती है.
अफवाहें उठती है कितनी,
कुछ तो बात सही मिलती है.
झांक रहा हूँ जिसके दिल में,
सब में आग लगी मिलती है.
समझ न आये क्यूँ लोगों की,
धड़कन रोज बढ़ी मिलती है.
भटका देती है वह अक्सर,
जो भी राह नयी मिलती है.
शिव नारायण शिव