महके फूल हवायें झूमी

गीत-5
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महके फूल
हवायें झूमीं
फागुन आया क्या?

क्या मुस्काई
न ई कोपल़ें
पुष्पित हुए पलाश.
बगिया में
मेहमानी करने
फिर आया मधुमास.

गली गली में
फिर भंवरों ने
रस बरसाया क्या?

नये पुराने
सम्बन्धों के
आगे पांव बढ़े.
उतर गये
लोगों के शिर से
जो थे भार चढ़े.

आंगन आंगन
फिर खुशियों का
बादल छाया क्या?

भौरे नाचे
डाली डाली
पंछी गाये गान.
प्रीति हृदय की
इक दूजे का
करने लगी बखान.

गीत फागुनी
द्वारे मेरे
तूने गाया क्या?

ऐसी चली
हवाएं जंगल
घाटी     महक गयी.
चेहरे चेहरे
की सबके
खामोशी चहक गयी.

बदली हुई
फिजाओं ने भी
मन  बहलाया क्या?

शिव नारायण शिव
19-3-21

उतना नीर नहीं बादल में जितना अपनी आँखों में

उतना नीर नहीं बादल में जितना अपनी आँखों में.

जीवन सब हीजी लेते हैंसुख सपने उल्लास लिए.
थोड़ी सी आशाएं कुछ ,अपनेअधरों पर प्यास लिए.

इच्छाएं ऐसीउड़ती हैं बगुले जैसे रातों में.

अपनी झूठी मर्यादा के खातिर जीते मरते हैं.
गाँव पड़ोसी मीत हितैषी कहाँ किसी से डरते हैं.

सारा खेल तमाशा अब भी धनवानों के हाथों में.

अहम स्वार्थ में डूबी दुनिया सारी धन की प्यासी है.
मगर गरीबों के चेहरे पर छाई अभी उदासी है.

थोड़े से ही क्षण बाकी हैं अपनी चलती सांसों में.

प्यार करूँ दुलराऊं किसको किसे लगाऊँ सीने से.
मैं तो खुदभी हार गया हूँ अपना जीवन जीने से.

गहरी नींद कहाँ आती है अब अपनों की बाहों में.

कभी न मेरी खुशियों को मुरझाने देती है.

कभी न मेरी खुशियों को मुरझाने देती है.

वाह जिन्दगी कितने स्वप्न सुहाने देती है.

तेरे ही तो संकेतों से तारे जलते हैं.
जब तू चाहे तब ये सूरज चंदा ढलते हैं.

सुख देती है दुख भी किसी बहाने देती है.

तेरे अधर से फूलों की पंखुड़ियाँ झरती हैं.
कभी होठ से निकली बोली आग उगलती है.

किसी तरह तू पग भी नहीं बढ़ाने देती है.

तू हंसती हैं फिर ये मौसम रूप बदलता है.
तू रोती है दिल  पर जैसे आरा चलता है.

फूल न शूलों को ही गले लगाने देती है.

दुनिया से तो संस्कार की बातें करती है.
लेकिन क्यों तू मेरे प्यार की बांह पकड़ती है.

रोता हूँ तो आंसू नहीं बहाने देती है.


किससे मन की बात छुपाऊँ किससे बात करूँ.

किससे मन की बात छुपाऊँ किससे बात करूँ.

इस बस्ती में चेहरे की पहचान नहीं मिलती.
प्यार मुहब्बत अपनों के दरम्यान नहीं मिलती.

किस दिल को अर्पित अपने मन के जज्बात करूँ.

शब्द किसी के और किसी के आंसू छलते है.
दिल के बहुत करीबी भी अब राह बदलते हैं.

किस साथी के आज हवाले अपनी रात करूँ.

जिसको भूख नहीं है उसको थाली मिलती है.
हाथ बढाओ उल्फत के तो गाली मिलती है.

कितना मन मारुं, कितनी छोटी औकात करूँ.

हंसने की इच्छा होती है रोना पड़ता है.
राई हो या पर्वत दुख सुख ढोना पड़ता है.

धूल उड़ाऊ किस घर में किस घर बरसात करूँ.

मेरी खुशियों का इरादा जो किया करती है

ग़ज़ल
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मेरी खुशियों का इरादा जो किया करती है.
जिन्दगी दर्द भी छुप छुप के दिया करती है.

दीन दुखियों से  हमेशा ही घृणा है    करती, 
काश दुनिया ये अमीरों की    दुआ करती है.

जुल्म करके भी बड़े     लोग छूट हैं जाते, 
बेकसूरों  को  अदालत  भी सजा करती है.

ठीक से पांव भी    पड़ते हैं नहीं धरती पर,
इस तरह तेरी   मुहब्बत भी  नशा करती है.

आदमी फर्ज की    राहों से भटक है जाता, 
आखिरी सांस तलक शम्मा जला करती है.

एक दो रोज की ये     बात नहीं है साथी, 
जिंदगी रोज ही   बेखौफ   खता करती है.

जान यह पाया नहीं आज तलक आखिर क्यूँ
देखकर मुझको तेरी आंख दुखा करती है.

महके फूल हवायें झूमी

गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...