दिल मचलने लगा आप को देखकर. दीप जलने लगा आप को देखकर.

 ग़ज़ल

*******

दिल मचलने लगा आप को देखकर.

दीप जलने    लगा आप को देखकर.


 हर कली बाग   की मुस्कराने लगी, 

फूल खिलने लगा  आप को देखकर.


था अंधेरा अभी तक तो छाया हुआ, 

दिन निकलने लगा आप को देखकर.


वो जिगर जिसमें अंकुर निकलते न थे, 

प्यार पलने लगा    आप को  देखकर.


दोकदम जिसको चलनाभी मुश्किल रहा, 

वो    उछलने लगा   आप को   देखकर.


एक मंजर जो   दिल को न भाया कभी, 

रुख बदलने लगा      आप  को देखकर.


दर्द पत्थर हुआ      था जिगर     का मेरे, 

अब पिघलने लगा      आप को देखकर.


शिव नारायण शिव

29-7-21

महके फूल हवायें झूमी

गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...