ग़ज़ल
*******
वो भी यूँ याद करते रहे.
हम जहन से उतरते रहे.
दिल उसी का हुआ आश्ना,
जो मुहब्बत से डरते रहे.
फूल शाखों पे महफूज थे,
हाथ आये बिखरते रहे.
और चेहरा बिगड़ता गया,
जिन्दगी भर संवरते रहे.
मुफलिसी में भी जानें गयी,
लोग खाकर भी मरते रहे.
नफरतों की यूँ बारिस हुई,
दिल के तालाब भरते रहे.
संग दिल आदमी था मगर,
प्यार होठों से झरते रहे.
शिव नारायण शिव
1-8-21