ग़ज़ल
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हाथ बढ़कर मिलाया किसी ने नहीं.
डूबते को बचाया किसी ने नहीं.
वो गिरा था उठाया किसी ने नहीं.
उसको अपना बनाया किसी ने नहीं.
इक मुहब्बत का ही मैं तलबगार था,
प्यास लब की बुझाया किसी ने नहीं.
अजनबी राह पे मैं भटकता रहा,
राह मुझको दिखाया किसी ने नहीं,
दर्द देने की कोशिश में दुनिया रही,
एक पल भी हंसाया किसी ने नहीं,
वो अंधेरा जमाने से मौजूद है,
एक दीपक जलाया किसी ने नहीं.
जिस सलीके से सुनने की चाहत रही,
उस तरह गुनगुनाया किसी ने नहीं.
शिव नारायण शिव
11-8-21