मुक्तक
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रफ्ता-रफ्ता गुजर सी गयी जिन्दगी.
पर लगे अब ठहर सी गयी जिन्दगी.
दिन ब दिन और सूरत बिगड़ती गयी,
हम तो समझे संवर सी गयी जिन्दगी.
शिव नारायण शिव
गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...