ग़ज़ल
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लोग खुद से ही धोखा किये.
आंधियों पर भरोसा किये.
धूल खिड़की से आती रही,
घर में कितना ही परदा किये.
वो बुरा ही समझते रहे,
हम तो अच्छे से अच्छा किये.
लफ्ज कड़वे ही निकले सदा,
यूँ बहुत मुंह को मीठा किये.
वह जहन से उतरता रहा,
हम जिसे रोज देखा किये.
प्यार का कोष बढ़ता गया,
जब कि दिल खोल खर्चा किये.
वो निगाहें मिलाते नहीं,
जो थे उल्फत का वादा किये.
शिव नारायण शिव
12-12-21