कदम कदम खतरे मिलते हैं. दूर दूर पहरे मिलते हैं.

 ग़ज़ल
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कदम कदम   खतरे मिलते हैं.
दूर दूर         पहरे    मिलते हैं.


मुफलिस के तो अब भी आंसू, 
पलकों में       ठहरे   मिलते हैं.


सुख के शजर   सभी मुरझाये, 
दुख के        हरे-भरे मिलते हैं.


जीवन पथ पर दुख के  दरिया, 
आखिर क्यूँ     गहरे मिलते हैं.


किससे बात      करोगे जो भी, 
मिलते हैं          बहरे मिलते हैं.


अब फूलों         के बाजारों में, 
कागज के       गजरे मिलते हैं.


कल तक नाज रहा है जिनको,

वो चेहरे     उतरे       मिलते हैं, 

शिव नारायण शिव
10-9-21

महके फूल हवायें झूमी

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