चन्दन को चन्दन लिखता हूँ. करके निर्मल मन लिखता हूँ,

 ग़ज़ल

*******

चन्दन को  चन्दन लिखता हूँ.

करके निर्मल मन लिखता हूँ, 


भाग गुणा     करता हूँ पहले, 

तब युग का वर्णन लिखता हूँ . 


दुनिया को    क्यूँ दुख होता है, 

जब तुमको सावन लिखता हूँ.


जिस   आंगन    में सूनापन है,

उसके घर  बचपन लिखता हूँ.


जिसको  पढ़कर मिटे उदासी, 

वह जीवन  दर्शन   लिखता हूँ.


मैं अपनी   इस  धरती माँ की, 

मिट्टी को   कंचन   लिखता हूँ.


तेरी  यादें         आ   जाती हैं, 

कविताएँ जिस क्षण लिखता हूँ.


शिव नारायण शिव

11-9-21

कौशाम्बी, गाजियाबाद

महके फूल हवायें झूमी

गीत-5 ******* महके फूल हवायें झूमीं फागुन आया क्या? क्या मुस्काई न ई कोपल़ें पुष्पित हुए पलाश. बगिया में मेहमानी करने फिर आया मधुम...