ग़ज़ल
क्या नहीं मैंने किया दिलको रिझाने के लिए.
जिन्दगी को और भी उम्दा बनाने के लिए.
आइये मिलकर कोई ईजाद अब रस्ता करें,
दोस्तों फिर वक्त की सूरत सजाने के लिए.
जब मेरी कुछ बात पर नाराज़गी होने लगी,
चुप जबां को कर लिया रिश्ता बचाने के लिए.
जिसने उल्फत पे मेरी कुछ गौर फरमाया नहीं,
दिल तड़पता क्यूँ है उसके पास जाने के लिए.
आदमी बेताब है खुद के गमों के बोझ से,
कौन आता है किसी का दुख मिटाने के लिए.
नीर वाले मेघ तो बरसात करते हैं कहीं,
मेघ आते हैं इधर बिजली गिराने के लिए.
मैं बहुत दिन की खुशी की ख्वाहिशें रखता नहीं,
एक पल मुझको भी चहिये मुस्कराने के लिए.
शिव नारायण शिव
26-7-21